वहाँ की रोशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत
मैं उस गली में अकेला था और साए बहुत..
किसी के सर पे कभी टूटकर गिरा ही नहीं
इस आसमाँ ने हवा में क़दम जमाए बहुत..
हवा की रुख़ ही अचानक बदल गया वरना
महक के काफ़िले सहरा की सिम्त आए बहुत..
ये क़ायनात है मेरी ही ख़ाक का ज़र्रा
मैं अपने दश्त से गुज़रा तो भेद पाए बहुत..
जो मोतियों की तलब ने कभी उदास किया
तो हम भी राह से कंकर समेट लाए बहुत..
बस एक रात ठहरना है क्या गिला कीजे
मुसाफ़िरों को ग़नीमत है ये सराय बहुत..
'शकेब' कैसी उड़ान अब वो पर ही टूट गए
कि ज़ेरे-दाम जब आए थे फड़फड़ाए बहुत.
~~शकेब जलाली
मैं उस गली में अकेला था और साए बहुत..
किसी के सर पे कभी टूटकर गिरा ही नहीं
इस आसमाँ ने हवा में क़दम जमाए बहुत..
हवा की रुख़ ही अचानक बदल गया वरना
महक के काफ़िले सहरा की सिम्त आए बहुत..
ये क़ायनात है मेरी ही ख़ाक का ज़र्रा
मैं अपने दश्त से गुज़रा तो भेद पाए बहुत..
जो मोतियों की तलब ने कभी उदास किया
तो हम भी राह से कंकर समेट लाए बहुत..
बस एक रात ठहरना है क्या गिला कीजे
मुसाफ़िरों को ग़नीमत है ये सराय बहुत..
'शकेब' कैसी उड़ान अब वो पर ही टूट गए
कि ज़ेरे-दाम जब आए थे फड़फड़ाए बहुत.
~~शकेब जलाली