Wednesday, 11 February 2015

शक़ ये मुझपे भला हुआ कैसे,

शक़ ये मुझपे भला हुआ कैसे,
मुझको यूँ बेवफा कहा कैसे .
इश्क ख़ुद भी नहीं समझ पाया,
उसका मुझ पे चढ़ा नशा कैसे.
जो रगों में बहा लहू बन कर,
भूल जाता उसे बता कैसे .
मेरी क़िस्मत लिखी अंधेरों ने,
मुझमें सूरज ये फिर उगा कैसे .
ग़म ने हँसते हुए कहा मुझसे ,
मुझसे होगा भला जुदा कैसे.
मुझको तूने नहीं पुकारा तो,
चलते-चलते मैं रुक गया कैसे.
जान ले वो जो रूह में झांके ,
मैंने उसको खुदा कहा कैसे
Surendra Chaturvedi

ज़ुल्फ़ आवारा गरेबाँ चाक घबराई

ज़ुल्फ़ आवारा गरेबाँ चाक घबराई नज़र
इन दिनों ये है जहाँ में ज़िंदगानी का निज़ाम
चाँद तारे टूट कर दामन में मेरे आ गिरे
मेने पूछा था सितारों से तेरे गम का मक़ाम
पड़ गई पैरहन-ए -सुबह-ए -चमन पर सलवटें
याद आकर रह गई है बेखुदी की एक शाम
तेरी इस्मत हो के हो मेरे हुनर की चांदनी
वक्त के बाजार में हर चीज़ के लगते हैं दाम
s. harikishan

पुकारता है कोई डूबता हुआ साया

चला हवस के जहानों की सैर करता हुआ
मैं ख़ाली हाथ ख़ज़ानों की सैर करता हुआ
पुकारता है कोई डूबता हुआ साया
लरज़ते आईना-ख़ानों की सैर करता हुआ
बहुत उदास लगा आज ज़र्द-रू महताब
गली के बंद मकानों की सैर करता हुआ
मैं ख़ुद को अपनी हथेली पे ले के फिरता रहा
ख़तर के सुर्ख़ निशानों की सैर करता हुआ
कलाम कैसा चका-चौंद हो गया मैं तो
क़दीम लहजों ज़बानों की सैर करता हुआ
ज़्यादा दूर नहीं हूँ तेरे ज़माने से
मैं आ मिलूँगा ज़मानों की सैर करता हुआ
अंजुम सलीमी

मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना

मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना
तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना
तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई ?
तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना
शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो
अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना
अंदर अल्मारिओं में चंद ऑराक़ परेशां है
मेरे ये बाकि मंदा ख्वाब, मेरी जान! ले जाना
तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते
पुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जाना
इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का
तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना
अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी
तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना
ऐतबार साज़िद