Wednesday 11 February 2015

पुकारता है कोई डूबता हुआ साया

चला हवस के जहानों की सैर करता हुआ
मैं ख़ाली हाथ ख़ज़ानों की सैर करता हुआ
पुकारता है कोई डूबता हुआ साया
लरज़ते आईना-ख़ानों की सैर करता हुआ
बहुत उदास लगा आज ज़र्द-रू महताब
गली के बंद मकानों की सैर करता हुआ
मैं ख़ुद को अपनी हथेली पे ले के फिरता रहा
ख़तर के सुर्ख़ निशानों की सैर करता हुआ
कलाम कैसा चका-चौंद हो गया मैं तो
क़दीम लहजों ज़बानों की सैर करता हुआ
ज़्यादा दूर नहीं हूँ तेरे ज़माने से
मैं आ मिलूँगा ज़मानों की सैर करता हुआ
अंजुम सलीमी

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