Wednesday 11 February 2015

शक़ ये मुझपे भला हुआ कैसे,

शक़ ये मुझपे भला हुआ कैसे,
मुझको यूँ बेवफा कहा कैसे .
इश्क ख़ुद भी नहीं समझ पाया,
उसका मुझ पे चढ़ा नशा कैसे.
जो रगों में बहा लहू बन कर,
भूल जाता उसे बता कैसे .
मेरी क़िस्मत लिखी अंधेरों ने,
मुझमें सूरज ये फिर उगा कैसे .
ग़म ने हँसते हुए कहा मुझसे ,
मुझसे होगा भला जुदा कैसे.
मुझको तूने नहीं पुकारा तो,
चलते-चलते मैं रुक गया कैसे.
जान ले वो जो रूह में झांके ,
मैंने उसको खुदा कहा कैसे
Surendra Chaturvedi

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