Saturday 16 June 2018

जबकि ईश्वर ने उसे एक आदर्श गुरु होने के सभी गुण दे कर इस दुनिया में भेजा है !

" .... तो बेटा आईआईटी मुंबई में कंप्यूटर साइंस ले रहा होगा " बधाई देने के बाद मैंने कहा था !
' जी ! मगर आप को कैसे पता ? ' पिता के चेहरे से खुशी स्वाभाविक रूप से टपक रही थी !
" सुना है कि सभी टॉपर मुंबई आईआईटी के कंप्यूटर साइंस में ही जाते हैं , वहाँ शायद जनरल की ५० सीट है तो उसमे टॉप के पचास बच्चे ही तो जायेंगे !अब आप के बेटे की रैंक एडवांस जेईई में पचास के अंदर है तो उसको तो मिल ही जाएगा "
' सही कह रहे हैं आप ! मुझे तो इस बात की टेंशन शुरू से थी की रैंक किसी भी तरह से पचास के अंदर ही आनी चाहिए '
"और अगर रैंक ५१ हो जाती तो कौन सा पहाड़ टूट जाता ? " मेरे इस प्रश्न के बाद पिता के चेहरे से वो खुशी का तेज अचानक कुछ कम हुआ था , जवाब में कुछ बोले नहीं सिर्फ मुस्कुरा दिए थे !
"तो क्या मिठाई नहीं खिलाते ? " मेरी इस बात पर तो मानो वो खिसिया ही गए थे !
" अच्छा एक बात बताना यार , कि बेटा बचपन से जितना होशियार है हम सब जानते हैं, वो जो चाहेगा उसे तो वो मिलना ही है, मगर वो कंप्यूटर साइंस ही क्यों लेना चाहता है "
इसके जवाब में इतने घिसे पिटे तर्क दिए गए की मानो कोई टेप चला दिया गया हो ! मुझे जवाब से संतुष्ट न होता देख पिता ने बेटे से मिलवाया था मगर वो भी करीब करीब पिता के जवाब को ही रीपीट कर रहा था ! मानो कोई कंप्यूटर प्रोग्राम चला दिया गया हो ! ये कहानी सिर्फ इस बच्चे और इस पिता की ही नहीं है ! पूरा हिंदुस्तान ११ वी १२ वी में एक कम्प्यूटर प्रोग्राम की तर्ज पर ऑपरेट करने लगता है ! सभी कोचिंग सेंटर की ओर दौडते नजर आते हैं ! मानो एक तरफ से गधे डालेंगे दूसरी तरफ से घोड़े निकलेंगे ! यहां किसी सामान्य बच्चे की क्या बात करें जब एक होनहार की यह हालत है ! हिंदुस्तान के टॉप फिफ्टी में आने वाला एक छात्र कितना बुद्धिमान होगा किसी को बताने की आवश्यकता नहीं ! अगर उसके पास भी मेरे एक सरल सवाल का कोई मौलिक और स्पष्ट जवाब नहीं , तो साफ़ है कि वो भी भेड़चाल में शामिल है ! उसका इस तरह से भीड़ में चलना विडंबना ही कहेंगे !
भेड़चाल समझते हैं ! भेड़ झुण्ड में चलती है ! अपनी अकल नहीं लगाती ! शायद उसके पास यह होती नहीं ! और अगर होती तो वो उसे जरूर लगाती और फिर किसी के हांकने से भीड़ के साथ नहीं चलती ! अपने रास्ते खुद बनाती ! लेकिन यहां तो मानव जो की एक बुद्धिमान जानवर है मगर उसका भी सबसे होशियार बच्चा भेड़चाल का शिकार हैं !
सब जानते हैं की ये सब पैकेज का कमाल है ! आईआईटी के बाद आईआईएम् फिर कोई कॉर्पोरेट की नौकरी या फिर अमेरिका में किसी अच्छे विश्वविद्यालय में मास्टर और फिर अमेरिकन कम्पनी में मोटा पैकेज ! लेकिन मेरा सवाल यहाँ थोड़ा भिन्न है ! इतने होनहार बच्चे को पैकेज के लिए इसी घिसे पिटे रास्ते में चलने की क्या आवश्यकता है ! वो जिस किसी भी क्षेत्र में जाएगा सफल ही होगा और अगर वो उसके पसंद का क्षेत्र होगा तो उसमे उसकी सफलता के साथ उसे संतोष भी मिलेगा और ऐसा होने पर वो कुछ ज्यादा बेहतर कर पायेगा ! शायद कोई अप्रत्याशित सफलता हाथ लगे ! और फिर अगर एक शीर्ष का छात्र रिस्क नहीं ले पा रहा तो देश के सामान्य छात्र के मानसिक अवस्था का सहज अनुमान लगाया जा सकता है !
वैसे उपरोक्त घिसे पिटे रास्ते में भी एक पेंच है , जो अभिभावक और छात्र को शायद अभी दिखाई नहीं दे रहा ! कोई जरूरी नहीं की मुंबई आईआईटी के कंप्यूटर साइंस के सभी पचास बच्चे जीवन में शीर्ष पर ही पहुंचे ! और इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि आईआईटी मुंबई के ही कोई दूसरी ब्रांच वाला छात्र इन पचास से बेहतर ना करे ! तो फिर ऐसे में टॉप में आने के लिए माँ बाप ने उस बच्चे के साथ ११वी और १२ वी के दो साल में जितना मानसिक अत्याचार किया होगा , वो सब व्यर्थ ही हुआ ! और फिर एक उच्च संस्थान का हर बच्चा जीवन के धरातल पर भी सफल ही हो कोई जरूरी नहीं ! कई बड़े हास्यास्पद उदाहरण दिखाई देते हैं ! आईआईटी के किसी इंजीनियरिंग विभाग से पढ़ कर आईआईएम् से मार्केटिंग में मास्टर करके कोई चॉकलेट को बेचे, फिर चाहे वो अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी ही क्यों ना हो , उस चॉकलेट बेचने में उसकी इंजीनियरिंग का क्या रोल ? दो साल की उन कठिन रातों का क्या ओचित्य जो उसने जागकर सिर्फ इसलिए बिताई थी की उसे आईआईटी में दाखिला मिल जाए ! उसकी यह तपस्या किस काम आ रही है समझ से परे है !ऐसे कई उदाहरण है और कई और भी बड़े दिकचस्प हैं ! ऐसे होनहार को जब किसी गारमेंट्स इंडस्ट्री में सेल्स के लिए अंडर गारमेंट्स के रंग का सैंपल कलेक्ट करते हुए सुनता हूँ तो मेरी क्या प्रतिक्रिया होती है उसे यहां शब्द देना संभव नहीं !
एक किस्सा बड़ा दिलचस्प याद आ रहा है ! एक मित्र जो स्वयं किसी साधारण स्कूल से पढ़ा था मगर उसने अपने व्यापार में अच्छी सफलता हासिल की थी ! एक बार जोश जोश में उसने एक आईआईटी का छात्र प्रोडक्शन के लिए और एक आईआईएम् का छात्र सेल्स के लिए रखे थे ! मगर साल से भी कम में परेशान हो कर उसमे मैनेजमेंट वाले को निकाल दिया था क्योंकि वो कोई विशेष नहीं कर पा रहा था और उसकी मोटी सैलरी कही से भी जस्टिफाई नहीं हो पा रही थी ! मगर जब मैंने आईआईटी वाले के बारे में पूछा तो पता चला की उसका सदुपयोग वो अपने बच्चो की एक्सट्रा पढ़ाई के लिए कर रहा है ! बातचीत में पता चला की वो आईआईटी का छात्र एक सफल प्रोफ़ेसर हो सकता है ! मगर उसे कौन समझाए , उसका दिमाग पहले से ही प्रोग्राम्ड है ! उसे तो भारत के समाज ने भेड़ बना दिया है जो पैकेज वाली नौकरी की कतार में लगा हुआ है ! जबकि ईश्वर ने उसे एक आदर्श गुरु होने के सभी गुण दे कर इस दुनिया में भेजा है !
सवाल उठता है की कॉर्पोरेट की नौकरी ही क्यों ? स्टार्ट अप क्यों नहीं ? और फिर कम्पुयटर साइंस ही क्यों , मानव साइंस क्यों नहीं , समुद्र साइंस क्यों नहीं , अंतरिक्ष साइंस क्यों नहीं , एग्रीकल्चर साइंस क्यों नहीं ,दूध का साइंस क्यों नहीं ! एक बुद्धिमान छात्र अगर डेयरी साइंस में पढ़ेगा तो वो फिर किसी चॉकलेट के कॉर्पोरेट में नौकरी नहीं ढूंढेगा बल्कि स्वयं किसी चॉकलेट फेक्ट्री का मालिक होगा ! उसके लिए उसे सिर्फ अपनी पसंद को उस समय ही जान लेना होगा जब वो आईआईटी में घुसने के लिए किसी गधे की तरह अपने ऊपर एक एक्स्ट्रा बोझ ढो रहा था !
Manoj singh

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