Saturday 16 June 2018

हमारी पहचान


" पेरिस जरूर जाईयेगा "
यूरोप जाने वाले यात्रियों को यह सलाह दोस्तों परिवार के सदस्यों द्वारा जरूर दी जाती है ! ऐसी ही कुछ बात मेरे साथ भी हुई थी ! जब मैं पहली बार पारिवारिक कार्य से नीदरलैंड्स जा रहा था ! और पेरिस जाना मतलब एफिल टॉवर को देखना ! यूरोपीय टूर ओपरेरटर के हर पैकेज में पेरिस अमूमन होता है और तकरीबन हर पर्यटक के लिए यह एक हॉट डेस्टिनेशन है ! यहां हमारा ध्यान इस बात की और नहीं जाता की कोई भी फ्रांस की बात नहीं करता ! दुनिया में कुछ एक ही स्थान -शहर-नगर -राज्य ऐसे हैं जो अपनी पहचान अपने संबंधित देश से अधिक रखते हैं ! वे अकेले अपने नाम से जाने जाते हैं ! ऐसा ही एक डेस्टिनेशन दुबई भी है ! वहाँ जाने वाला कभी नहीं कहता की वो यूएई जा रहा है !
बहरहाल मैं भी समय निकाल कर पेरिस पहुंच गया था ! सबसे पहले तो एयरपोर्ट ने बहुत निराश किया था, और कोई क्यों ना होये , इससे बेहतर तो भारत में अब कई हैं ! उसके बाद होटल ने तो पूरा मूड खराब कर दिया था ! इतना छोटा कमरा की भारत के अनेक नगरों की अनगिनत धर्मशालाओं के रूम भी बेहतर होंगे ! ऊपर से इतना महंगा की उसी रेट में यूरोप के किसी भी शहर में उससे कहीं बेहतर कमरे मिल जाएंगे ! ऐसे में होटल रिसेप्शन वालों के रूखे व्यवहार ने मुझे विचलित किया था ! पहले पहल तो लगा की वे शायद मेरे श्याम रंग के कारण मुझसे ऐसा व्यवहार कर रहे हैं ! मगर बाद में पता चला की तकरीबन हर फ्रांसीसी श्रेष्ठता की बीमारी से ग्रसित है और उसके भीतर ऐंठ के कीटाणु किसी ऐतिहासिक रोग की तरह जन्म से ही विद्यमान् होते हैं और ये इसी संक्रामक रोग के कारण सभी से ऐसा ही व्यवहार करते हैं ! मेरे भीतर एफिल टावर को लेकर इतनी उत्सुकता पैदा कर दी गई थी की मैं इन सब बातों को इग्नोर करके सो गया और अगले दिन सुबह सुबह ही एफिल टॉवर पहुंच गया ! सामने लोहे का एक भारी भरकम टॉवर था ! मगर इसमें ऐसा क्या अद्वितीय है जिसको लेकर पूरी दुनिया में शोर है ? पहली प्रतिकिया यही थी और अंत तक यही बनी रही ! ठीक ही तो सोच रहा था , लोहे का टावर ही तो है , ऐसे तो अब हर बड़े शहर में कोई ना कोई छोटे-बड़े टावर मिल ही जाएंगे ! और फिर एफिल टावर कोई बिफोर क्राइस्ट तो बना नहीं की हैरान करे ! पता किया तो पता चला की १८८० -९० में बना है ! अर्थात मात्र सवा सौ साल पुराना ! तब तक की भी दुनिया कोई इतनी भी पिछड़ी नहीं थी की एक लोहे के टावर पर दातों तले अंगुली दबाये ! बहरहाल मैंने चारो और कई चक्कर लगाए की शायद किसी एंगल से ऐसा कुछ दिखे की लोगो का पागलपन समझा जा सके ! मगर हर एंगल से जब निराश हो गया तो एक जगह बैठ कर सोचने लगा की कहीं एफिल टावर ओवर रेटेड तो नहीं ! मैंने अपनी जुबान बंद ही रखी थी ! कही कोई मुझे पिछड़ा ना घोषित कर दे ! चारो ओर नजर डाली , व्यवस्था के नाम पर भी तथाकथित पेरिस वाली कोई बात नजर नहीं आयी ! पर्यटकों की इतनी रेलमपेल भीड़ के लिए एक ही शौचालय था ! जिसके सामने लम्बी कतार थी ! अर्थात इस मामले में भी भारत की व्यवस्था आजकल अधिक संवेदनशील है ! खैर , अगले दो दिन पेरिस की गलियॉं में घूमता रहा मगर मुझे ऐसा कोई स्थान नजर नहीं आया जिसे लेकर मैं एन इवनिंग इन पेरिस जैसी कोई फीलिंग अपने अंदर पैदा कर सकूं ! बताया गया था की पेरिस दुनिया की फ़ैशन और ग्लैमर की राजधानी माना जाता है। घुमक्कड़ हूँ, मुझे याद आया कनाडा में मॉन्ट्रियल स्थित सेंट कैथरीन रोड जो हर तरह से यहां से अधिक ग्लैमरस है ! मॉन्ट्रियल याद आने के पीछे वजह थी की वो भी फ्रेंच संस्कृति के रूप में पहचाना जाता है ! और जहां तक रही बात नारी की सुंदरता की तो अगर सिर्फ सफेद रंग ही सुंदरता का पैमाना है तो ठीक, वरना पेरिस की किसी भी खूबसूरत महिला से कहीं अधिक सुंदर और रूपवान भारत मां की बेटियां हैं ! और ये सिर्फ किसी बॉलीवुड के परदे पर नकली नहीं बल्कि साक्षात किसी भी महानगर से लेकर कसबे और गांव में मिल जाएंगी !
अंत में थक हार कर मैं सीन नदी के तट पर बैठ गया था ! हाँ चुम्बन लेते जोड़े सड़को पर आम दिख जाते , मगर यह मेरे लिए उछ्रंखलता है ! मैं इस पर अभी अपना मत बना ही रहा था की सीन नदी के किनारे मुझे एक स्थान ऐसा मिला जहाँ ये जोड़े अपने प्रेम को स्थाई बनाने के लिए एक ताला खरीदते हैं और उसे वहाँ लगी एक जाली में लगा कर चाबी नदी में फेक देते हैं ! अरे यह तो एकदन हिंदी फिल्मो की तरह हुआ ! इसने तो मुझे हॅसने पर मजबूर कर दिया था ! प्रेम में भी इतना दोगलापन ! वैसे अभी मुझे अंतिम झटका लगना बाकी था ! मैं जब नदी किनारे टहल रहा था तो वहाँ मेरी निगाह एक ऐसी किताब पर पड़ी जिस पर भारतीय नारी का चित्र था ! यह कामसूत्र थी , फ्रेंच में ! मैंने किताब का दाम पूछा और दुकानदार ने जो कीमत माँगी , यह कहते हुए उसे दिया की इसके वो अगर डबल भी मांगता तो मैं उसे दे देता ! वो नहीं समझा होगा ,मैं उसे समझाना भी नहीं चाहता था , यहां तो मैं ऐसा करके अपने सांस्कृतिक अभिमान को सिर्फ सींचित कर रहा था ! और इस बिंदु पर आकर मेरे दिमाग से फ़्रांस का सारा नशा उतर चुका था ! वो जो गलियों में सरे आम प्रेमप्रदर्शन को ही अपनी आधुनिकता का पैमाना मानते हैं वे भी प्रेरित हैं कामसूत्र से ! वो क्या समझ पाएंगे कामसूत्र को ! असल में उनके लिए सेक्स मस्ती है हमारे लिए जीवन आनंद ! उनके लिए सेक्स सिर्फ सेक्स है जबकि हमारे लिए यह कला है योग है प्रेम है और संस्कार भी ! वो सेक्स से आगे नहीं देख पाते जबकि हम तो संभोग से समाधी तक पहुंच जाते हैं ! तभी मेरे मन ने अपने आप से कहा की एफिल टावर ही नहीं पेरिस भी ओवर रेटेड है ! और जब यह बात मैंने अपने कुछ मित्रों को बाद में बताई तो पाया उनके मन में भी ऐसा ही मत पहले से बना हुआ था !
आप सोच रहे होंगे की मैं आप को बेवजह पेरिस घुमा रहा हूँ ! जी नहीं ! जिस तरह से एफिल टावर फ़्रांस की पहचान बनाया गया है वैसा ही कुछ कुछ ताजमहल को भारत के लिए बनाया गया है ! आप का ताजमहल को लेकर क्या मत है ? मेरा तो कुछ कुछ एफिल टावर वाला ही मत रहा है ! आज से तीस साल पहले जब मैं ताजमहल पहली बार देखने गया तो वह मेरा उसे आखरीबार देखना था ! उस उम्र में भी वो मुझे अधिक प्रभावित नहीं कर पाया था ! और जब अब समझ थोड़ी थोड़ी बड़ी है तो यह समझ नहीं आता की ताजमहल को इतना ओवररेट क्यों और कैसे किया गया ? आज जब इसका जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करता हूँ तो सर्वप्रथम मन में आता है की फ़्रांस के पास तो पेरिस और पेरिस में एफिल टावर के अतिरिक्त कुछ और विशेष नहीं है दिखाने के लिए मगर ऐसी स्थिति भारत की तो नहीं ! फ़्रांस के पास तो खींचतान के हजार दो हजार साल का इतिहास है हमारे पास तो कितना भी सीमित कर लो दस हजार साल का है ! तो फिर क्या वजह है जो ताजमहल को भारत का एफिल टावर बना दिया गया ? और फिर एफिल टावर तो फिर भी फ़्रांसीसी क्रांति के शताब्दी महोत्सव के दौरान आयोजित विश्व मेले का प्रवेश द्वार था , जिसके द्वारा फ्रांस अपनी तकनीकी की ऊंचाई को प्रदर्शित करना चाहता था ! मगर हम एक मकबरे के द्वारा क्या दिखलाना चाहते हैं ? अगर कोई इसे प्रेम का प्रतीक बतलाता और मानता है , यह एक अनपढ़ या अनजान के लिए तो ठीक है मगर किसी पढ़ेलिखे को जब शाहजांह की असलियत पता चलती होगी तो वो कहने वाले की मानसिकता पर जरूर प्रश्न चिन्ह लगाता होगा ! अगर कोई इसे अपना वैभव प्रदर्शन मानता है तो सच कहें तो यह हमारी गुलामी की निशानी है !
अगर इसका यह सच स्वीकार भी कर ले की यह शाहजांह द्वारा ही मूल रूप में प्रारम्भ से बनाया गया तो इसका निर्माण वर्ष १६५० के आसपास है ! अर्थात मात्र तीन चार सौ साल पुराना ! जिस सभ्यता के वैभवपूर्ण इतिहास को पश्चिम के विद्वान् भी दस हजार साल पुराना मान रहे हैं उसे क्या इतने लम्बे कालखंड के लिए कुछ और अपनी पहचान के लिए नहीं मिला ? एक तरह से विश्व पर्यटक के सामने ताजमहल को भारत की पहचान बना कर हम ने स्वयं अपने इतिहास को कितना छोटा कर लिया ! कहीं यह भी तुष्टीकरण तो नहीं ? यह एक अति सुंदर भवन-इमारत-महल-मकबरा तो हो सकता है मगर अद्वितीय कहीं से भी नजर नहीं आता ! यह कम से कम सनातन देश की पहचान तो बिलकुल नहीं हो सकता !
दुख इस बात का है की भारत के अति विस्तृत कालखंड के अनेक अद्भुत प्रतीक और पहचान को उन्ही मुगल आक्रमकारियों ने तहस-नहस कर दिया जिसके एक वंशज शाहजांह को ताजमहल बनाने का अतिरिक्त श्रेय दिया जाता है ! जबकि पांच सौ साल की भीषण मारकाट के बाद भी बहुत कुछ बचा है जो अब भी भारत की विशिष्ट पहचान बन सके ! यूं तो सनातन में भौतिक वैभव प्रदर्शन करने का जीवन दर्शन नहीं मगर फिर भी महान अशोक ने अनेक अद्भुत निर्माण करवाए थे ! मुगलो की अराजकता से कुछ ही बच पाए ! २३०० साल पूर्व बनाये गए विशेष स्तम्भ और दो हजार साल से अधिक समय से खुले आसमान के नीचे खड़ा लोह स्तम्भ, जो अब तक आधुनिक विज्ञान को हैरान किये हुए है की इसमें जंग क्यों नहीं लगी ! हो सकता है ये अति प्राचीन और विशिष्ट होते हुए भी विशाल ना होने के कारण आप को प्रभावित ना करें ! और अगर सिर्फ विशालता ही पैमाना है तो जो मैं अब उदाहरण देने जा रहा हूँ उसका नाम भी सामन्य भारतीय ने नहीं सुना होगा ! जब भारत में ही यह नाम प्रचलित नहीं तो विदेशी कैसे जान पाएंगे ! यह है महाराष्ट्र में एलोरा स्थित कैलाश मन्दिर ! संसार में अपने ढंग का अनूठा अद्वितीय अनुपम ! एलोरा की अनेक गुफाओं में से यह मंदिर सबसे सुदंर और प्राचीन है ! ये मंदिर सिर्फ एक पत्थर पर बना हुआ है ! इस मंदिर की स्थापत्य कला और कारीगरी आज भी हैरान करती है ! ध्यान रहे यह आज से कम से कम डेढ़ हजार साल पहले बनाया गया था !ऐसा आधुनिक विद्वान् कह रहे हैं जो भारत के इतिहास को अति प्राचीन मानना ही नहीं चाहते ! तो फिर मान लीजिये की यह उसके भी काफी पहले का होगा ! इस मंदिर को बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि यह कैलाश पर्वत की तरह ही दिखें।यह मंदिर केवल एक चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है। इसके निर्माण के क्रम में अनुमानत: ४० हज़ार टन भार के पत्थारों को चट्टान से हटाया गया। अर्थात इतने टन पत्थरों को काट कर इसे बनाया गया ! ना जाने इसे बनाने में कितने साल लग गए हों ? सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो यह है की ये मंदिर दो मंजिला है। इस मंदिर को एक बार देखने से आपका मन नहीं भरेगा और आप यहां बार-बार आना चाहोगे। मगर विश्व को ताजमहल दिखाया जाता रहा है , क्यों ? क्या इसका जवाब लेना जरूरी नहीं ?
एलोरा की ये ३४ गुफाएँ हमारी पहचान हो सकती हैं ! क्यों नहीं हो सकती ? यह पाषाण काल से हमारी श्रेष्ठता का ज़िंदा प्रमाण है ! भारत का सनातन काल क्रम यही नहीं रुक जाता ! इससे भी पूर्व में , द्वितीय शताब्दी ई॰पू में बनी अजंता की गुफाएं हमारी प्राचीनतम चित्र एवम् शिल्पकारी का एक अनोखा प्रमाण है ! कला और दर्शन के लिए खजुराहो के मंदिर देख लो ! ये अलंकृत मंदिर मध्यकालीन सर्वोत्कृष्ठ स्मारक हैं ! इस अप्रतिम सौंदर्य के प्रतीक को देखने के लिए कोई भी बार बार आना चाहेगा ! यहां संभोग की विभिन्न कलाओं को देखकर फ़्रांस को भी अपनी आधुनिकता पर सदेह होने लगेगा ! इसके निर्माण के पीछे एक पूरा दर्शन है ! जो कामसूत्र से शुरू होकर जीवन सूत्र तक पहुँचता है ! कैलाशनाथ मंदिर कांचीपुरम से लेकर कोणर्क सूर्य मंदिर ! दक्षिण में ऐसे अनगिनत मंदिर हैं , जहां ये सूची कभी ना खत्म होने वाली है ! जबकि इसे छोटी करने की हर सम्भव कोशिश की गई , मुगलों द्वारा ! उन्ही आक्रमणकारी मुगलों द्वारा ,जिनके एक ताजमहल पर आधुनिक भारत को लहालोट हो जाने के लिए मजबूर किया जाता है !
उपरोक्त दर्शाये अद्भुत निर्माणों में से कोई भी किसी राजा विशेष के किसी व्यक्तिगत चाहत का परिणाम नहीं है ! ना ही इसे बनाने वाले किसी भी राजा ने इन्हे अपने व्यक्तित्व निर्माण के उद्देश्य से बनाया था ! हमारे वैभवशाली इतिहास के श्रेष्ठ काल के ये कुछ उदारण हैं , ना जाने ऐसे ही कितने है जो अब भी इधर उधर अपनी पहचान देने के लिए तत्पर हैं ! इनमे से किसी को भी , दुनिया का कोई भी पर्यटक ओवररेटेड नहीं कह सकता !
मेरी आपत्ति ताजमहल से नहीं है शाहजांह से भी नहीं है , उनसे है जो शाहजांह और ताजमहल को हिन्दुतान की पहचान बताते आये हैं ! हे भारत के आधुनिक पुत्रों , यह देवभूमि है ,यह मानव सभ्यता के आदिकाल से चली आ रही एक समृद्ध संस्कृति है ,यहाँ आर्यों ने वेद रचा , एक ऐसा जीवन दर्शन जिसकी गहराई आज तक कोई नहीं नाप पाया ! यहां मृत शरीर को पंचतत्व में विलीन कर दिया जाता है ! मिट्टी के शरीर को मिट्टी मान लिया जाता है ! ऐसे जीवन दर्शन की पवित्र भूमि पर एक मृत शरीर के ऊपर ऐसा आडम्बरपूर्ण प्रदर्शन , हैरान करता है ! मृत पिरामिडों को हम कब से पूजने लगें ? अगर सम्राट को ही पूजना है तो इस देवभूमि पर श्रीराम और श्री कृष्ण जैसे अवतारी पुरुषों ने जन्म लिया ! ऐसे राजा मानव इतिहास में दूसरे नहीं हुए ! श्रीराम के आदर्श और श्रीकृष्ण के कर्म विश्व में अद्वितीय हैं ! यूं तो इनके नाम का स्मरण ही काफी है लेकिन अगर कही इनके सामने साक्षात् नमन होने का मन हो तो इनके जन्मस्थल दूर नहीं ! ये अयोध्या और मथुरा मात्र नगर नहीं है , ये हैं भव्य भारत की दिव्य पहचान ! एक बार आधुनिक युग को इनके बारे में बता कर तो देखों , फिर चाहे कोई भी धर्म मजहब सम्प्रदाय का भारतीय होगा अपने पूर्वजो के इतिहास को जानकर गौरव करेगा और विदेशी नतमस्तक होगा !
Manoj Singh

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