Saturday 16 June 2018

यूपीएससी और देश की नौकरशाही

बुरा है पर सच है।
यूपीएससी और देश की नौकरशाही एक तमाशा बन चुकी है।
इंडस्ट्री के विषय वस्तु पर एक्सपर्ट लोगों की जहां आवश्यकता है वहां साधारण ग्रेजुएट तीन चार साल रट्टा मार मार कर बिना किसी नौकरी या धंधे या विषय के अनुभव यानि एक्सपीरिएंस के, आईएएस बन रहे हैं, ऊपर से अब तो जिहादी भी भरने लगे हैं, ऐसे तो चल चुका देश।
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इस देश में नेताओं से भी बड़ी समस्या देश की परमानेंट नौकरशाही है। जहां देश में नेतृत्व हर पांच साल बाद बदल जाता है, वहीं ये नौकरशाह रिटायरमेंट तक वहीं जमे रहते हैं।
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ज्वाइंट सचिव पद पर सीधे बाहरवालों की एंट्री चालू करवा के मोदी ने सच में बरैया के छत्ते में हाथ मारा है।
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यूपीएससी का पूरा गोरखधंधा नेहरू के समय से ऐसा ही है जहां आर्ट्स वालों को विज्ञान वालों पर तरजीह दी जाती गई है ताकि समाजवाद और वामपंथ को बढ़ावा मिले।
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कोई भी सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट यानि विषय विशेषज्ञ पहले उस सेक्टर की इंडस्ट्री में काम करता है तब सब्जेक्ट नॉलेज यानि विषय का ज्ञान पाता है।
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नीति निर्धारकों को सीधा एक से अधिक मौके दे कर पहले निर्धारक बनाते हैं और वह अपनी मनमर्ज़ी ही चलाते हैं जब तक ऊपर से जनता द्वारा चुनाव किए नेता का हंटर ना चले। आम आदमी भी सोचता है कई बार कि नियम ऐसे टेढ़े उल्टे सीधे क्यों हैं तो वो इसी नौकरशाही की देन होता है ताकि इनकी जेबें भर्ती रहें और देश इन्हीं नियमों में उलझा रहे। देश में भ्रष्टाचारी नेता तो बदलते रहते हैं मगर इन्हीं नौकरशाहों कि बदौलत घूसखोरी चालू रहती है।
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अगर देश बदलना है तो देश की नौकरशाही में विषय विशेषज्ञों को ही लाना होगा, उनकी डिग्री और क्षेत्र में उनके अनुभव के हिसाब से, ना कि कोरी किताबें पढ़ कर एक पूर्णतः समाजवादी विचारधारा से प्रेरित एक पेपर निकालने के बाद।
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आपके यूपीएससी के पेपर और सब्जेक्ट का सिलेबस कोई स्पेशलिस्ट सेट नहीं करते। एक बार करवा के देखिए और वैकेंसी की भरपाई विभागीय स्तर पर करवाइए देखते हैं कितने माई के लाल यूपीएससी क्लियर कर पाते हैं और मन मर्ज़ी का cadre और नियुक्ति पाते हैं।
मोदी ने अफसरशाही में सीधी भर्ती खोली उसपर लिखी पिछली पोस्ट जब पेज पर लिखी तब एक बंदा बोल गया, "एडमिन तूने कभी prelims क्लियर किया है जो सिविल सर्विसेज या यूपीएससी को बुरा कह रहा है?"
तो भईया फिर से वही बात दोहराता हूं, "prelims छोड़ो, mains क्लियर करने वाले कितने लोग टी एन सेशन या अशोक खेमका बन सामने आए हैं? सबने मिल कर कौनसा जितनी योजनाएं नेताओं ने घोषित, चाहे किसी भी पार्टी की हो, उतनी ही ज़मीन पर पूरी उतारी हों?"
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क्या विश्लेषण करने के लिए आप एक समानांतर मॉडल से मिलान नहीं कर सकते?
मैं दुनिया की एक अग्रणी टेक्नोलॉजी कंसल्टिंग कंपनी में एक टेक्नोलॉजी कंसल्टेंट हूं। पिछले पांच साल से इस इंडस्ट्री के कई छोटे बड़े पहलुओं को काफी करीब से देख सुना जाना और समझा है। मैं आज आराम से बता सकता हूं कि देश की टेक्निकल संस्था जैसे कि NIC इत्यादि में मोटी मोटी क्या समस्याएं हैं। क्या कारण है कि मैं ऐसा कर सकता हूं मगर इन संस्थाओं के अफसर ये काम नहीं कर पाते?
और मैं अकेला नहीं जो ये विश्लेषण कर सकता हूं मेरे जैसे हजारों लोग हैं इंडस्ट्री में।
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अफसरशाही में hiring प्रणाली यानि इम्तेहानों को ऐसा रखा गया है कि समाजवादी विचारधारा और उसपर लिख पाने वाले सिस्टम में अधिक से अधिक घुस सकें। इस बात से कोई संबंध नहीं कि जो अफसर बन रहा है वो क्या कभी उस विभाग में सच में काम करना चाहता था या उसके पास उस विभाग का या उससे संबंधित इंडस्ट्री का कोई पहले का दो बरस भर का अनुभव है भी या नहीं।
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समस्या यहीं शुरू होती है।
कुछ लोगों का झुंड किताबी ज्ञान के दम पर देश की जनता के लिए महत्त्वपूर्ण फैसले लेने के लिए सक्षम मान लिया जाता है। ये लोग प्लैनिंग कमीशन के दौर में, नेताओं से मिल जुल कर फैसले करते थे कि देश का कितना संसाधन (पढ़ें लूट) कैसे और किसके हिस्से में आएगा। तो असल में कोई भी इसका आसानी से लूट के लिए इस्तेमाल कर सकता था और हुआ भी यही।
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इन्हीं नेताओं और अफसरशाही ने 1991 तक देश का ऐसा दीवाला निकाला था कि देश का सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था।
अभी भी जितने घोटाले होते हैं या हुए हैं उनके leakage अफसरशाही के माध्यम से ही होते हैं क्योंकि सरकार की सभी योजनाओं को प्रशासन ही ज़मीन पर उतारता है।
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आपको काम करना था या लूट? किस लिए सिस्टम इतना लचीला है आज भी कि इतने कम अफसर फंसते हैं घोटालों में? ज़्यादा से ज़्यादा सस्पेंड भी हुए तो भी आधी तनख्वाह और भ्रष्टाचार की मलाई से सबके घर पलते रहते हैं।
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जब तक मोदी ने प्लैनिंग कमीशन को खत्म करके नीति आयोग का गठन नहीं किया, संसाधन नीलामी प्रक्रिया पारदर्शी नहीं की, बैंकों को मजबूत नहीं किया, सरकारी खरीद को कड़े नियमों से नहीं बांधा, और आधार से खाते लिंक करवा के लाखों करोड़ की leakage नहीं रोकी, तब तक देश हर रोज़ ऐसे ही लूटा जा रहा था। फिर भी आज की तारीख में केंद्र एवं राज्य की ऐसी घटिया अफसरशाही के होने के कारण उनकी बनाई बुरी नीतियों के चलते आज भी, कुछ सेक्टरों में Make In India, या सरकारी कंपनियों जैसे Air India के विनिवेश जैसी कुछ बेहतरीन योजनाएं बुरी तरह से विफल होती जा रही हैं।
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आपको जब मुस्लिमों जैसे अच्छे मुसलमान भी होते हैं types अच्छे अफसरशाह भी होते हैं जैसे कुछ एक example देने पड़ जाएं तो फिर आपको खुद समझ जाना चाहिए कि आपका सिस्टम कोई awesome और fool proof तो है नहीं कि सभी अफसरशाह ईमानदार निकल रहे हों या भ्रष्टाचार बिल्कुल भी ना हो रहा हो।
और इसके विश्लेषण के लिए किसी को prelims क्लियर करने की जरूरत नहीं होती।
- Vishwajeet Sinha

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