Sunday 2 November 2014

रोना . नहीं है

बहुत मासूमियत ढोना . नहीं है
बुरा है वक्त .पर रोना . नहीं है

ज़मीं से आसमां तक है . अँधेरा
उजाले का सफर खोना .नहीं है

दुखों के हैं बहुत घर. ज़िन्दगी में
खुशी का एक भी .कोना नहीं. है

सफाई से . सफाई. कीजिए. क्या
जिगर का दाग जब धोना नहीं है

कई आँखों में कितने ख्वाब हैं पर
उसे सच भी . कभी होना . नहीं है

---------------------------------------अशोक आलोक

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