उसे बचाए कोई कैसे टूट जाने से
वो दिल जो बाज़ न आये फरेब खाने से
वो शख्स एक ही लम्हे में टूट-फुट गया
जिसे तराश रहा था में एक ज़माने से
वो दिल जो बाज़ न आये फरेब खाने से
वो शख्स एक ही लम्हे में टूट-फुट गया
जिसे तराश रहा था में एक ज़माने से
रुकी रुकी से नज़र आ रही है नब्ज़-इ-हयात
ये कौन उठ के गया है मेंरे सिरहाने से
न जाने कितने चरागों को मिल गयी शोहरत
एक आफ़ताब के बे-वक़्त डूब जाने से
उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे जिसके यूँ मुस्कुराने से
- इकबाल अशर
ये कौन उठ के गया है मेंरे सिरहाने से
न जाने कितने चरागों को मिल गयी शोहरत
एक आफ़ताब के बे-वक़्त डूब जाने से
उदास छोड़ गया वो हर एक मौसम को
गुलाब खिलते थे जिसके यूँ मुस्कुराने से
- इकबाल अशर
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