Sunday 2 November 2014

~ मुश्किलें ज़िन्दगी की दर्स हैं घबराना कैसा इनसे ,,
ये ऐसी राह हैं , मौत को भी ज़िन्दगी दे जाये ...........
ज़ख्म ताज़ा हो तो ,ज़ख्मों के मरहम भी लगा दो ,,
मुमकिन है कोई ज़ख्म , ज़ख्मों को शिफ़ा दे जाए ............
गर अपनी ख्वाहिशें कम कर, दुनिया के मुसाफिर,,
तड़पती रूहों को भी , उनके कफ़न मिल जाएं ....................
अदब से चल के दिखा , ज़िन्दगी की राहों पर ,
भटकते भीड़ में राही को , अपना पता मिल जाये .........
नेकियाँ भूल , गुनाहों से शर्मशार हो दिल ,
मुमकिन है अस्तग़फ़ार से, हर लम्हा खुदा मिल जाये ...........
*** दर्स =Lesson , मरहम =Ointment , ज़ख्म = Wounding, शिफ़ा = Relax,अदब =Respect , गुनाह =Sin,मुमकिन = possibilities, अस्तग़फ़ार = Acceptance of Sins , लम्हा = Seconds / Nano Seconds
~ Nida aftab ~

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