Sunday 2 November 2014

तुम्हारे सामने

हश्र के दिन भी हो शरह-ए-ग़म1 तुम्हारे सामने
सब ख़ुदा के सामने हों, हम तुम्हारे सामने
रू-ब-रू मेरे बिठाया जिस तरह से ग़ैर को
हो यूं ही एक फ़ित्‍ना-ए-आलम2 तुम्हारे सामने
बाद मेरे रोएगा सारा ज़माना देखना
धूम से होगा मेरा मातम तुम्हारे सामने
क़त्ल कर डालो हमें या जुर्म-ए-उल्फ़त3 बख़्श दो
लो! खड़े हैं हाथ बांधे हम तुम्हारे सामने
एक तुम्हारी चुप में सौ एजाज़4 देखे ऐ बुतो
चुप खड़े हैं ईसा-ओ-मरयम तुम्हारे सामने
हाल-ए-दिल में कुछ न हो तासीर, ये मुमकिन नहीं
कोई इतना हो कहे हर दम तुम्हारे सामने
आह लब पर आए थम थम कर कि तुम घबरा न जाओ
दर्द दिल में हो मगर कम से कम तुम्हारे सामने
अब ये बेबाकी, वो दिन भी याद हैं जब छुप गए
आ गया जब कोई नामहरम5 तुम्हारे सामने
-----दाग़ देहलवी
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1.ग़म की व्याख्या 2.संसार 3.प्रेम का अपराध 4.चमत्कार 5.अपरिचित

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