Sunday 2 November 2014

इक तेरी दीद

हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी
ज़ब्त का हौसला नहीं बाक़ी

इक तेरी दीद छिन गई मुझ से
वर्ना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी

अपनी मश्क़-ए-सितम से हाथ न खेंच
मैं नहीं या वफ़ा नहीं बाक़ी

तेरी चश्म-ए-अलमनवाज़ की ख़ैर
दिल में कोई गिला नहीं बाक़ी

हो चुका ख़त्म अहद-ए-हिज्र-ओ-विसाल
ज़िन्दगी में मज़ा नहीं बाक़ी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़.....

No comments:

Post a Comment